भारत के संविधान की मूलभावना के साथ खिलवाड़ करते हुए मोदी सरकार ने नागरिकता कानून, 1955 में जो नया संशोधन किया है उसने देश की राजनीतिक व सामाजिक चेतना को झकझोर कर रख दिया है। इसके विरोध में लगातार धरनाङ्गप्रदर्शन जारी हैं। केंद्र एवं भाजपा शासित प्रदेशों में पुलिस के बल पर प्रतिरोध की धार को कुंद करने के कुत्सित प्रयास लगातार जारी है। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान एक अप्रिय सच्चाई उभरकर सामने आई वह है- देश की अधिसंख्य आबादी में संविधान बारे में जानकारी का नितांत अभाव! संविधान विशेषज्ञों, कुछ बुद्धिजीवियोंमानवाधिकार कार्यकर्ताओं और नागरिकशास्त्र के विद्यार्थियों को छोड़ तो देश की आबादी का एक बहत बडा हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा संविधान की मूलभावना के उल्लंघन की बात सुनकर भौचक्का सा रह गया। भला सोशल मीडिया का जिसने देश के संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप और हालिया नागरिकता संशोधन कानून के मध्य भारी विरोधाभास को विस्तार से रेखांकित करने में महती भूमिका निभाई। इससे पहले भी एक और दिलचस्प बात यह देखने में आई थी कि सत्ताधारी दल के प्रचारतंत्र वजह से अधिकांश भारतीय 'धारा 370' शब्द से परिचित तो थे मगर उनमें से दस प्रतिशत को भी यह जानकारी नहीं थी कि यह संविधान का एक अनुच्छेद है और इसे निरस्त करके सरकार ने संविधान के साथ छेड़छाड़ की है। लेकिन सवाल यह है कि सोशल मीडिया पर कितने भारतीय सक्रिय हैं और यदि सक्रिय हैं भी तो उनमें से कितनों को संविधान की जानकारी है? अफसोस कि इस सवाल का जवाब भी निराशाजनक ही है।
हम भारत के लोग... और हमारा संविधान