झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कैबिनेट की पहली बैठक में ही 2017-2018 में पत्थलगड़ी आंदोलन में शामिल लोगों के खलिाफ दर्ज मुकदमे को वापस ले लिया है। रघुबर दास के कार्यकाल में छोटानागपुर और संथाल परगना काश्तकारी कानून में ढील देने की कोशिश की गई थी और इसे लेकर भारी विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया था। इस मामले में भी प्रदर्शनकारियों के खलिाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। हेमंत सोरेन ने कैबिनेट की बैठक में इन मुकदमों को भी वापस लेने का फैसला किया है। पत्थलगड़ी आंदोलन में आदिवासियों ने बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों के लिए प्रदान किए गए अधिकारों को लिखकर जगह-जगह जमीन के ऊपर लगा दिए थे। यह आंदोलन काफ़ी हिंसक हो गया था। इस दौरान पलिस और आदिवासियों के बीच जमकर संघर्ष हआ था और आंदोलन की आग फैलती चली गई थी। सरकार ने आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल लोगों पर आपराधिक मामले दर्ज किए थे। उम्मीद है कि निर्दोष ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ देशद्रोह और दूसरे आरोपों के मामले शीघ्र ही वापस ले लिए जाएंगे। सरकार पत्थलगड़ी वाले गांवों में सुरक्षाकर्मियों द्वारा किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन की भी न्यायिक जांच कराएगी। इसके साथ ही बगैर किसी दोष के प्रताडति किए गए आदिवासियों के लिए मुआवजे का भी प्रबंध किया जाएगा।
क्या था पत्थलगड़ी आंदोलन?
संविधान की पांचवी अनुसूची में मिले स्वशासन के अधिकारों को लेकर राज्य के आदिवासियों ने खूटी और पश्चिमी सिंहभूम जिले के कुछ प्रखंडों में पत्थलगड़ी शिलालेख) कर उन इलाकों में पारंपरिक ग्राम सभाओं के सर्वशक्तिशाली होने की बात कही थी। तब यह कहा गया कि ऐसे इलाकों में सम्बन्धित ग्राम सभाओं की अनुमति के बगैर किसी भी बाहरी आदमी का प्रवेश वर्जित है। इन इलाकों में खनन और सरकारी निर्माण आदि के लिए भी ग्राम सभाओं की अनुमति ज़रूरी थी। इन बातों को लेकर कोचांग, शारदामारी, उदबुरु और जिकिलता जैसे गांवों में पत्थलगड़ी महोत्सव आयोजित किए गए। इनमें हजारों आदिवासियों का जुटान हुआ ।इस दौरान जून-2018 में लोकसभा पूर्व उपाध्यक्ष कडयिा मुंडा के गांव चांडडीह और समीपवर्ती घाघरा गांव में आदिवासियों और पुलिस बल के बीच हिंसक झड़पें हुईं। उस वक्त पुलिस फायरिंग में लोगों को गोलियां भी लगी थीं। इनमें से एक आदिवासी युवक की मौत हो गई। इसके बाद पुलिस ने अपने तीन जवानों के अपहरण का आरोप लगाया। बाद में पुलिस ही दावा किया कि उसके तीनों जवान सकशल वापस आ गए हैं। उनके हथियार भी बरामद कर लिए जाने का दावा किया गया। देशद्रोह के आरोप तब तत्कालीन रघुवर दास सरकार ने पत्थलगड़ी आंदोलन में शामिल लोगों के खिलाफ विभिन्न थानों में दर्जनों एफ़आइआर दर्ज करवाई। कुछ पुलिस रिपोटों में सैकड़ों अज्ञात आदिवासियों के खलिाफ भी देशद्रोह के आरोप लगाए गए। इसके बाद कई दर्जन लोगों की गिरफ्तारियां गईं। तब सरकार ने अखबारों में विज्ञापन देकर और बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाकर पत्थलगड़ी को देशद्रोह करार दिया था।